~ खरोश…
मेरी खाब में ही रूह काँप जाती है,
हैरां हूँ कि तुम्हें नींद खूब आती है…
लापरवाहियों से भी चराग बुझते हैं
दीये सिर्फ आँधियाँ नहीं बुझाती हैं…
हूँ शर्मसार मैं ख़ामोश हकमरानों से,
साहेबान को तो शर्म भी न आती है…
हल्का शोर ज़ोरों का डरा देता है हमको,
आपको चीख चिल्लाहट क्या डराती है…
ये मेरे शहर का एक आम वाक्या है,
तुम्हें ये लगा मेरी खरोश ज़ाती है…
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