~ तरक्की …
प्लाट पर काम शुरू हो चुका था…
खुदाई,
नींव,
पिलर,
उसके बाद दीवारें,
फिर छत,
खिड़की–दरवाज़े लकड़ी लोहे का काम,
और रंगाई–पुताई इत्यादि…
फिर घर के सामान की बारी,
एक सोफ़ा,
डबल बेड,
ड्रेसिंग टेबल का शीशा,
दो अलमारी,
दीवार के लिए तस्वीरें,
क़ालीन, डाइनिंग–टेबल नहीं लिया,
एक बुक शेल्फ भी…
किचन और बिजली की नंबर लगा,
गैस बर्तन वग़ैरह,
फ़्रिज, एसी की जगह कूलर,
पंखा, लाईटे,
टीवी,
और म्यूजिक सिस्टम,
कुछ गमले,
और डोर–बेल्ल भी सेट हो गयी…
एक उम्र लगी बाबूजी को यह सब करने में,
मेरी पढ़ाई भी पूरी हो गयी और शहर में नौकरी भी लग गयी,
हम दोनों में अब बस एक शहर का फ़ासला था…
और अब मेरी बारी थी ये सब करने की,
मेरी औलाद और मुझ में समंदर भर का फासला तो होना चाहिए…