~ माला आराम की…
राधा को हो जैसे श्याम ना मिला,
हमको भी काम का कोई काम ना मिला…
यहाँ वहाँ मटकियाँ उठाते रहे,
डिंगें हाँकते हम बड़बड़ाते रहे…
बस इसी आस में सुबह उठ जाते,
कोई हमें प्यार से आवाज़ लगा दे…
दिन भर की फिर अफ़रा–तफ़री,
जैसे बिना बारिश की छतरी…
शिल्पा की मम्मी सलमा की अम्मी,
किसी काम में ना रखना कोई कमी…
रात नुक्कड़ पे हो जाना खड़ा,
प्यार दूर, कोई हमसे वजह होक ना लड़ा…
क्यूँ करना चमचागिरी सोच नौकरी नहीं की,
आलस की डिग्री और चोटी की फुक्रागिरी…
ख़ुद को शहंशाह से कभी कम नहीं आँका,
ख़ुशनसीबी ने कभी हमारी ओर नहीं झाँका…
कोई पागल कोई दीवाना कह बुलाने लगा,
कभी कभी तो आयिना भी हमें समझाने लगा…
जैसे राधा ने माला जपी श्याम की,
वैसे हमने भी माला जपी आराम की…