~ चुनाव चिन्ह…
सोचा उन्नीस में अगला चुनाव है और कोई बीस इक्कीस न हो जाये,
हम उठे, चुनाव ऑफिस गए और अपना परचा भर आये…
हमारा परचा एक्सेप्ट तो हो गया पर कोने पे सितारा * बना दिया,
कहा, विचार होगा इस पर – कल आये और अपना चुनाव चिन्ह विस्तार से समझाए…
हमने चुनाव चिन्ह में तीन ऑप्शन दिए थे – “बोतल, गिलास और बार”
हमें क्या, हम क्लियर थे समझाने को, एकदम तैयार…
अब उठायी दोनों टाँगे, ताँगा झोला और फिर पहुँच गए चुनाव दफ़्तर…
नम्बर पहला था और एक सवाल आया “ये भी कोई चुनाव चिन्ह है; ये तो समाज की बुराईयाँ है, कुछ और लायें”
अब ये ज़रा हमें दुःख गया, पैर फैलाये और विस्तार से समझाया –
इन तीनो चिन्ह में से कोई एक भी बता दें जो धर्म, जात, या किसी भी वजह से तोड़ती हो,
चलिए यह बता दीजिये, कौन सा कुछ खाने से रोकता है, या कौन सा अपना विचार हम पर थोपता है,
जनाब…शराब कौन बना रहा है, कौन पिला रहा है और कौन पी रहा है इसमें कोई भेद भाव नहीं है,
शराब तो एकता का प्रतीक है और ये बात पूरी दुनिया ठीक है,
रही बात बाकी के चिन्हो की – समाज में बुराईयां कौन फैला रहा हैं, वो चिन्ह शांति के होंगे मगर आग वही लगा रहे हैं और आप ख्वामखाह हमें ही बहका रहे हैं…
कोई हाथ फैला रहा हैं और खानदान चला रहा हैं,
कहीं फूल है तो कीचड भी बेहिसाब,
साईकिल वोट खा रही हैं और गाडी चला रही हैं,
हथोड़ा कहीं कर रहा है वार और तरक़्क़ी में हैं बेरोज़गार,
कहीं तीर कमान, कहीं उगता सूरज और कहीं हल का निशान – सब मिल के कर रहे हमें परेशान,
हमारे इरादे मज़बूत है इनपे झाड़ू ना चलायें,
जनाब, हाथी चल सकता है – तो बोतल, गिलास या बार क्यों नहीं…
हमारा चिन्ह हमें मिलना चाहिए और हमने तो ओपिनियन पोल भी करवाया हैं –
अस्सी प्रतिशत हमारे साथ हैं,
जो धर्म – जात – रंग – भेद से ऊपर उठना चाहते हैं…
बचे बीस प्रतिशत,
कुछ लड़ने लड़ाने में व्यस्त और कुछ विदेशों में हैं विलुप्त…
जनाब, हमारा तो सिर्फ़ चिन्ह नशे का है प्रतीक…
ये सब तो सत्ता के नशे में हैं धुत्त…कहिए अब ठीक?…
kyakhub kahe hain vishal babu…gaddi aap hee ka intezar kar rahi hai…happiness index bekrar hai aapse milne ko