फलों के राजा आम ने कुछ खास करने का तय किया,
छोड़ा पेड़ और किया प्रस्थान, कर दिया उसने ऐलान…
अब आम, आम नहीं रहा वो एकदम खास हो गया,
अब आम, आम नहीं रहा वो वो इलीट–क्लास हो गया…
शहर के बीचों–बीच उसका अब अपना एस्टेट था,
अपॉइंटमेंट के बाद भी मिलने को करना पड़ता उसका वेट था…
इन सब आम की किस्मों में एक किस्म पहले से ही थी खास,
मोर इक्वल दैन अदर्स वो, उसके सामने सब इक्वली बकवास…
खास एंड प्रीमियम किस्म ने सोचा अब थोड़ा बदलाव लाया जाए,
सबसे उमदा क़िस्म का नाम गुरु, बाक़ियों को भक्त बुलाया जाए…
गुरु का काम था देना प्रवचन सुबह और शाम, ले के प्रभु का नाम,
भक्त प्रवचनों पे अमल करते, जो ना ले प्रभु ना नाम उससे लड़ते…
ऐलान हुआ सिर्फ़ आम ही पेड़ पर उगेगा और कोई फल नहीं,
पेड़ सारे बाक़ी लिटाए जाने लगे, जो ना लेते कटवाए जाने लगे…
बाक़ी फलों को ये बात खलने लगी, बदले की आग जलने लगी,
सब हुए एकजुट, गन्ने को चुना प्रधान, आगे सुनाऊँ या ख़ुद ही लेंगें जान…
आम का पलट वॉर, सब गुठली वालों को भाई–बहन बना लिया, लगाया घाव,
नफरतों का बो दिया बीज वहां जहाँ बीज ही नहीं थे, खेला कमल का दाँव…
अब सब गुठलियाँ एक और, दूसरी और बेचारे गिने चुने केले, गन्ने वगैरहा,
यही होता हैं ना खास होने का मज़ा मसल दो पीस दो जो मांगे कोई जगह…
वही किस्सा – हर आम खास होना चाहता है हर खास खास रहना चाहता है,
आम और खास की युगों–युगों की लड़ाई, हर दौर में जाती है दोहराई…
अब फल हटा कर जानवर लगाओ या फूल पत्तों को लड़वाओ,
कुछ ना बदलेगा, खास खास रहेगा और बेमौत हर बार आम ही मरेगा…