हेलो इसमत, मंतो…
तुम्हारी आख़िरी कहानी पड़ी, क्या–क्या लिखती रहती हो, इस बार अगर कोई भी शोर हुआ, मैं नहीं आने वाला तुम्हारे साथ, लाहोर…
अच्छा, पहली बात वो आख़िरी कहानी नहीं है, मन किया तो और लिखूँगी, और दूसरी, ठीक है मत आना, मैं भी देखती हूँ कैसे रह लेते हो…
अच्छा, कहाँ हो अभी…
अभी, चारपाई पे, उलटी लेट कर, कहानी को सीधा कर रही हूँ, कुछ ज़्यादा ही टेडी हैं, इससे अच्छा तो खीर बना लेती, तुम पहले कहते तो तुम्हें भी बुला लेती, मिल के दोनो कहानी और खीर दोनो सीधी कर लेते…
उफ़्फ़, बातों में तुमसे कोई नहीं जीत सकता, मेरे सिवा…आ रहा हूँ, इस गरम हवा में ठंडी खीर खाएँगे और कहानी का उल्लू सीधा कर लेंगे…
(ठक–ठक करते ही दरवाज़ा चर्र कर के खुला, और मुँह से निकला)
दरवाज़ा लगवाया ही क्यूँ है जब बंद करना ही नहीं होता…
लगवाया था, की कोई आए तो अंदर से बंद कर लूँगी और आया भी कौन, मंतो…तुम्हारे ही नाम पर कहावत बनी है, बिन बुलाए मेहमान…
हँस लो, हँस लो…ऐसी ना जाने कितनी है जिन्हें इन्तज़ार ही सिर्फ़ मेरा रहता है…
रहने भी दो हुज़ूर, ऐसा तुम्हारा दिल कहता है…तुम्हारा इन्तज़ार तो खुदा भी ना करे…
कुछ खिलाओगी, पिलाओगी भी या सिर्फ़ खुदा का ख़ौफ़ दिखा के डराओगी, खीर कहाँ है और वो टेढ़ी कहानी…
मुझे देखो, मैं सीधी हो गयी तो कहानी भी सीधी हो गयी, कुछ पका लिया था, पकने से पहले ही खा लिया था, कहानी क्या थी, बला थी, तुम देख लेते तो लट्टू हो जाते…
फिर वही बातों की जलेबी पका गोल गोल घुमा रही हो, सब छोड़ो क्या खिला रही हो, बाक़ी समझ गया, कहानी पूरी हो गई और भूख उसी के साथ मर गयी तुम्हारी, सब अकेले अकेले ही कर लिया, मुझे सिर्फ़ सताने के लिए बुलाया है क्या…
अब कुछ पिलाओ, गिलास कहाँ रखें है…
पुराने गिलास, घर पर ही होंगे कहीं, नए चाहिए, तो नहीं है, बाज़ार से ले आओ…शराब तुम्हें पता है कहाँ रखी है…निकाल लो…मेरी सिगरेट नहीं मिल रही, सब हो गया तो, वहाँ से लिहाफ़ हटा बैठिए जनाब, चियर्स…
उफ़्फ़ तुम और तुम्हारी बातें, ये लो सिगरेट, जलाओ और एक मेरे लिए भी…
शुक्रिया जनाब, ये लीजिये और आख़िरी कश ना पीजिएगा, कहानियाँ और लिखूँगी पर आरज़ू इतनी की आख़िरी कश मैं ही लूँगी…
इसमत तुम लिखती रहो हमेशा, अब से मैं पूरी कभी नहीं पियूँगा, जब भी पियूँगा, हर बार छोड़ दूँगा…आख़िरी, एक कश तेरे लिए…