बूढ़ा जो देखन मैं चला, बूढ़ा ना मिल्या कोय,
फिर जो देखी अपनी लाठड़ी, रे मुझसे बूढ़ा ना कोय,
इब के, उठायी अपनी लाठड़ी, मैं चल पड़ो…
बूढ़ा जो देखन मैं चला, बूढ़ा ना मिल्या कोई,
दो क़दम भी ना चला गयो, रे मुझसे बूढ़ा ना कोई,
लाठड़ी ने किया किनारे, मैं बैठ गयो,
इब के, मँगायी पहियों वाली कुर्सी, मैं रिडक पड़ो…
बूढ़ा जो देखन मैं चला, बूढ़ा ना मिल्या कोई,
रे पहियों मुझसे ना हिलो, रे मुझसे बूढ़ा ना कोई,
चकराया, सब छोड़ के इब मैं चिल्लाया,
इब के, चारपायी ने मँगवाया, मैं लेट गया…
चारों बेटन नू किया जमा, लेटे लेटे आँखंन ने मूँद लिया,
ना हाथा मैं ना टांगा में मेरे जान, रे ठीक ठाक सै माहरे कान,
यो ना कहना था, यो कह दिया, बुड़े कानन ने यो सुन लियो,
“बूढ़े तू मरता काहे नी, तू मरे ज़मीना बाँटेंगे“
इब के, चारों लौंडन नू किया जमा, गिरते पड़ते मैं खड़ा हुआ…
रे सालों तुमको बड़ा किया, अपने पैरन पे खड़ा किया,
इब बूढ़ा हूँ तो के हुआ, समसान ते लेके जाओं इब,
इस बूढ़े ने तुम जलाओ इब…
फिर बैठ ज़मीना लेना बाँट, और मेरी राख ने लेना चाट…